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एक अनोखा नजरिया 04-16

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Shyam's reply.

एक अनोखा नजरिया......  ,

ना तख़्त रहे हैं ना रहें हैं ताज,
न रहीं  विक्टोरिया,ना ही मुमताज़।
जिस के साम्राज्य में सूरज कभी न ढलता था
प्रकाश की भीख,वे ही मांग रहे हैं, मानो चन्द्रमा से आज।  


Ashok Chakradhar's poem,

सूरज जब एकदम नीचे जाकर
समंदर में मिक्स हो जाएगा,
चंद्रमा का बल्ब
मुंबई की विक्टोरिया के लैंप में
फिक्स हो जाएगा।

(मुंबई में आज सायं सात बजे)

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