इक जमाने से जमाने से जुदा रहे मगर खुदा ही सिर्फ अपने खुदा रहे सभी दुशवारियाँ भी मुस्कुरा के सहे ना गवारा हुआ इन्सान को खुदा कहे जितेन्द्र मणि सुप्रभात ज़माने से नहीं अपने आप से जुड़ा हैं हम, किसी और के तो न हो सके,काश अपने तो होते हम। दावा खुद्दारी का किया, पर खुद से परे रह न सके हम । इबादत में सिज़दे तो,किये,पर ज़ह्म में खुद को न बसा सके हम। खुदा को समझना तो दूर, अपने आप को भी समझ न सके हम।